सनी देओल का जोशीला अंदाज़ सिंह साब द ग्रेट फिल्म से

सनी देओल: 42 सालों से लगातार बने असली हीरो

  • जब भी हम हिंदी सिनेमा के बड़े सितारों की बात करते हैं तो सबसे पहले अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान जैसे नाम सामने आते हैं। अमिताभ बच्चन ने बतौर लीड हीरो लगभग 25 साल तक बॉलीवुड पर राज किया। वहीं खानों की तिगड़ी – शाहरुख, सलमान और आमिर – 1990 के दशक से लेकर आज तक लगभग 35 सालों से बतौर लीड हीरो दर्शकों के दिलों पर छाए हुए हैं। लेकिन इन सभी से भी लंबा और शानदार करियर एक और सितारे का रहा है, और वो हैं धर्मेंद्र। धर्म पाजी पूरे 38 साल तक लीड हीरो बने रहे।

लेकिन कहते हैं न कि बेटा अक्सर बाप की राह पर चलता है, और कई बार उससे भी आगे निकल जाता है। यह कहावत सनी देओल पर बिल्कुल सटीक बैठती है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि “बाप-बाप होता है” वाली कहावत को “बेटा-बेटा होता है” कर डाला।

सनी देओल का गुस्से वाला चेहरा, जीत फिल्म का सिनेमैटिक लुक।

डेब्यू से आज तक लीड हीरो

सनी देओल ने 1983 में फिल्म बेताब से डेब्यू किया। उस दौर में दर्शकों को लगा था कि वो धर्मेंद्र के बेटे हैं तो जरूर स्टारडम पाएंगे, लेकिन बहुत से स्टार-किड्स की तरह यह सोचना गलत भी साबित हो सकता था। मगर सनी देओल ने शुरुआत से ही अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनके एक्शन, उनकी आवाज़ और उनका गुस्सा उन्हें बाकियों से अलग करता था।

आज 2025 में, यानी पूरे 42 साल बाद भी, सनी देओल फिल्म जाट में बतौर लीड हीरो नजर आए हैं। 67 साल की उम्र में लीड रोल करना अपने आप में रिकॉर्ड है। खास बात यह है कि उन्होंने अपने पूरे करियर में कभी भी “हीरो के भाई“, “हीरो के दोस्त”, या “हीरो के पापा-चाचा” जैसे रोल नहीं किए। वो लगातार लीड हीरो ही बने रहे।

सनी देओल रॉकेट लॉन्चर के साथ, जाट फिल्म का अंदाज़।

घायल के बाद बना नया रिकॉर्ड

1990 में जब फिल्म घायल रिलीज़ हुई तो बॉलीवुड को असली एक्शन हीरो मिल गया। इस फिल्म के बाद एक चीज़ इतिहास बन गई – सनी देओल ने कभी भी स्क्रीन पर गुंडों से मार नहीं खाई। चाहे सामने 10 गुंडे हों या 10,000, सनी पाजी हमेशा अकेले ही सब पर भारी पड़े।

यहां तक कि अगर फिल्म की कहानी पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई की हो, तो भी सनी देओल ही विजेता बनकर सामने आए। बॉर्डर, गदर, घायल, दामिनी, घातक, गदर 2 जैसी फिल्मों में उनकी दमदार मौजूदगी ने यह साबित किया कि हिंदी सिनेमा में “हीरो” की परिभाषा वही तय करते हैं।

सनी देओल का अलग अंदाज़

सनी देओल की खासियत यह रही कि उन्होंने कभी भी ट्रेंड के पीछे भागने की कोशिश नहीं की। जब 90 के दशक में रोमांटिक फिल्मों का बोलबाला था, तब भी उन्होंने एक्शन और इंटेंस रोल्स पर फोकस किया। जब 2000 के दशक में मल्टीस्टारर फिल्मों का दौर आया, तब भी सनी देओल ने अकेले दम पर फिल्में खींचीं।

उनकी आवाज़, उनका संवाद बोलने का तरीका, और हाथ उठाने भर से दर्शकों में पैदा होने वाला जोश – यह सब उन्हें अनोखा बनाता है। खासकर उनका मशहूर “ढाई किलो का हाथ” तो बॉलीवुड की सबसे बड़ी पहचान बन चुका है।

आज के हीरो बनाम सनी देओल

आज के समय में बॉलीवुड हीरो अपनी इमेज के हिसाब से रोल चुनते हैं। कोई एक्शन करता है, तो कोई रोमांस। लेकिन सनी देओल ने कभी सीमाएं तय नहीं कीं। उन्होंने रोमांस भी किया, इमोशनल रोल भी किए और एक्शन तो उनका ट्रेडमार्क है ही।

जहां शाहरुख खान या सलमान खान जैसी स्टार पावर फिल्मों की बॉक्स ऑफिस गारंटी रही, वहीं सनी देओल की फिल्मों की गारंटी दर्शकों का भरोसा रहा। दर्शक जानते थे कि अगर सनी पाजी की फिल्म है, तो उसमें एक्शन, इमोशन और देशभक्ति की जबरदस्त खुराक जरूर मिलेगी।

 

जेल में बंद सनी देओल का एब्सट्रैक्ट इलस्ट्रेशन

42 साल का सफर – एक मिसाल

यह सवाल कई लोग पूछते हैं कि अब सनी देओल जैसे सितारे कब रिटायर होंगे। 67 साल की उम्र में भी अगर कोई हीरो लीड रोल निभा रहा है, तो यह अपने आप में अनोखी बात है। लेकिन सच्चाई यह है कि सनी देओल की जगह कोई और नहीं ले पाया है।

सनी देओल सिर्फ एक अभिनेता नहीं हैं, बल्कि एक युग हैं। उन्होंने यह साबित किया कि असली हीरो वही होता है जो कभी हार न माने और हर बार जीतकर सामने आए।

42 सालों तक लगातार लीड हीरो बने रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है। अमिताभ, सलमान, शाहरुख और आमिर ने जरूर लंबा करियर बनाया, लेकिन सनी देओल ने जो अलग मुकाम हासिल किया है, उसे कोई भी छू नहीं पाया।

इसलिए आज सवाल यही है – क्या अब वक्त आ गया है कि बॉलीवुड के बाकी एक्टर्स उनसे सीख लें और समय रहते सन्यास ले लें? या फिर कोशिश करें कि वो भी सनी पाजी की तरह हमेशा के लिए दर्शकों के दिलों में अमर हो जाएं।

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हसन बाबू एक passionate ब्लॉगर और कंटेंट क्रिएटर हैं, जो बॉलीवुड की कहानियाँ, स्टार्स के अनकहे किस्से और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी रोचक जानकारी अपने पाठकों तक पहुँचाते हैं। इनका उद्देश्य है कि पाठक केवल खबरें ही नहीं बल्कि सच्ची कहानियों के पीछे छुपे अनुभव और संघर्ष को भी समझ सकें।

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