अगर 90 के दशक के बॉलीवुड की बात की जाए तो एक नाम सबसे ऊपर आता है—गोविंदा। रंग-बिरंगी शर्ट, बिजली जैसी तेज़ी से बदलते डांस मूव्स, और कॉमेडी में वो टाइमिंग जिसे कॉपी करना लगभग नामुमकिन था। 90’s में वो सिर्फ एक एक्टर नहीं, बल्कि एक ट्रेंड थे। सिनेमाघरों से लेकर गलियों तक, उनके गानों और डायलॉग्स का क्रेज़ अलग ही लेवल पर था। लेकिन, वक्त के साथ वो चमक फीकी पड़ गई। सवाल उठता है—क्या इंडस्ट्री ने गोविंदा को भुला दिया, या उन्होंने खुद अपने करियर से मुंह मोड़ लिया?
सुपरस्टार बनने का सफर
गोविंदा का करियर किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं था। मिडिल-क्लास बैकग्राउंड से आने वाले इस कलाकार ने 80 के दशक के अंत में इंडस्ट्री में कदम रखा और जल्द ही अपनी अलग पहचान बना ली। जहां बाकी हीरो रोमांटिक इमेज में फंसे थे, वहीं गोविंदा ने अपनी मास अपील, कॉमिक टच और एनर्जी से खुद को अलग खड़ा कर दिया।“राजा बाबू”, “कुली नंबर वन”, “हीरो नंबर वन”, “दुल्हे राजा” जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर झंडे गाड़ रही थीं। हर डायरेक्टर उनकी डेट लेने के लिए तैयार रहता था। एक समय तो ऐसा आया जब उनके घर के बाहर फिल्ममेकर्स की लाइन लग जाती थी।
डाउनफॉल की शुरुआत
लेकिन कहते हैं ना—टॉप पर पहुंचना आसान है, वहां टिकना मुश्किल। गोविंदा के करियर में गिरावट की शुरुआत उनके अपने फैसलों से हुई।सबसे पहला कारण था ओवर कॉन्फिडेंस। इंटरव्यूज़ में उनका यह कहना कि “मैं शाहरुख खान और सलमान खान से भी बड़ा स्टार हूं” सुनकर इंडस्ट्री के कई लोग खफा हो गए। ये बयान सिर्फ एक राय नहीं था, बल्कि एक ऐसा संदेश था कि गोविंदा खुद को बाकी से ऊपर मानते हैं।
ब्लॉकबस्टर फिल्में ठुकराने की गलती
एक और बड़ा झटका उन्हें मिला उनके फिल्म सिलेक्शन से। आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने देवदास और तेरे नाम जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों को करने से मना कर दिया।जहां “देवदास” ने शाहरुख खान के करियर को एक नई ऊंचाई दी, वहीं “तेरे नाम” सलमान खान के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुई। लेकिन गोविंदा ने इन फिल्मों को ना कहकर “जिस देश में गंगा रहता है” जैसी फ्लॉप फिल्में साइन कर लीं। यह ऐसा था जैसे उन्होंने खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार दी हो।
पॉलिटिक्स का गलत मोड़
जब उनका करियर ढलान पर था, उन्होंने पॉलिटिक्स में कदम रखा। 2004 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़कर उन्होंने जीत हासिल की। लेकिन राजनीति में भी उनका सफर फिल्मों जैसा लंबा नहीं चला। संसद की बैठकों से नदारद रहना, अपने इलाके में कम दिखना, और राजनीतिक जिम्मेदारियों को हल्के में लेना—ये सब बातें जनता और पार्टी, दोनों को अखरने लगीं।नतीजा यह हुआ कि उन्होंने न सिर्फ अपना फिल्मी करियर खो दिया, बल्कि राजनीति में भी कोई खास पहचान नहीं बना पाए।
कमबैक की कोशिशें और नाकामी
समय के साथ बॉलीवुड बदल चुका था। नए चेहरे, नए ट्रेंड और अलग तरह की स्क्रिप्ट्स का दौर था। लेकिन गोविंदा की कमबैक कोशिशें उसी पुराने 90’s स्टाइल में रहीं। “रंगीला राजा”, “फ्राइडे”, “आ गया हीरो” जैसी फिल्में यह साबित कर रही थीं कि वो अभी भी अतीत में जी रहे हैं, जबकि ऑडियंस आगे बढ़ चुकी है।उनके डांस और कॉमेडी में वही जान थी, लेकिन स्टोरीटेलिंग और स्टाइल में अपडेट की कमी साफ नज़र आती थी।
इंडस्ट्री का बदलता चेहरा
90 के दशक में स्टार पावर का मतलब था—बड़ा नाम, गाने, और फैन्स की भीड़। लेकिन 2000 के बाद कंटेंट का दौर शुरू हो गया। जहां पहले एक्टर का नाम ही फिल्म हिट करा देता था, वहीं अब कहानी और परफॉर्मेंस का महत्व बढ़ गया।गोविंदा शायद इस बदलाव को अपनाने में पीछे रह गए। वो अभी भी उसी फार्मूले पर टिके रहे—ओवर द टॉप कॉमेडी, चमकीले कपड़े और स्लैपस्टिक ह्यूमर—जो अब दर्शकों को कम पसंद आने लगा था।
सीख जो मिलती है
गोविंदा की कहानी एक सबक देती है—इगो और गलत चॉइसेज का कॉम्बो करियर की बर्बादी का सबसे आसान रास्ता है। स्टारडम मिलने के बाद भी अगर इंसान समय के साथ खुद को अपडेट न करे, तो धीरे-धीरे लोग उसे भूलने लगते हैं।अगर गोविंदा ने समय के साथ अपने काम में बदलाव किया होता, नई स्क्रिप्ट्स अपनाई होतीं और इंडस्ट्री के बदलाव को एक्सेप्ट किया होता, तो आज वो सिर्फ “लेजेंड” ही नहीं बल्कि “लिविंग लेजेंड” होते।
गोविंदा—हमेशा दिल में
भले ही आज गोविंदा बड़े पर्दे पर कम दिखाई देते हैं, लेकिन उनके गाने और फिल्में आज भी लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला देती हैं। उनकी कॉमिक टाइमिंग, डांसिंग स्टाइल और स्क्रीन प्रेज़ेंस ऐसी है कि कोई दूसरा एक्टर उसे रिप्लेस नहीं कर सकता।गोविंदा के फैन्स अब भी उन्हें उसी प्यार से याद करते हैं, बस अफसोस इतना है कि वो अपनी पोज़िशन बनाए रखने में चूक गए।
मोरल ऑफ द स्टोरी:बॉलीवुड में सफलता बनाए रखने के लिए सिर्फ टैलेंट काफी नहीं, समय के साथ खुद को बदलना और सही फैसले लेना भी उतना ही जरूरी है। गोविंदा का नाम भले ही इंडस्ट्री में आज पहले जैसा न चमक रहा हो, लेकिन वो हमेशा 90’s के “हीरो नंबर वन” रहेंगे।
आपकी राय?** क्या आपको लगता है कि गोविंदा अभी भी कमबैक कर सकते हैं? या फिर उनका ज़माना अब खत्म हो चुका है? कमेंट में बताएं!

हसन बाबू एक passionate ब्लॉगर और कंटेंट क्रिएटर हैं, जो बॉलीवुड की कहानियाँ, स्टार्स के अनकहे किस्से और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी रोचक जानकारी अपने पाठकों तक पहुँचाते हैं। इनका उद्देश्य है कि पाठक केवल खबरें ही नहीं बल्कि सच्ची कहानियों के पीछे छुपे अनुभव और संघर्ष को भी समझ सकें।
हसन बाबू एक passionate ब्लॉगर और कंटेंट क्रिएटर हैं, जो बॉलीवुड की कहानियाँ, स्टार्स के अनकहे किस्से और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी रोचक जानकारी अपने पाठकों तक पहुँचाते हैं। इनका उद्देश्य है कि पाठक केवल खबरें ही नहीं बल्कि सच्ची कहानियों के पीछे छुपे अनुभव और संघर्ष को भी समझ सकें।